मैं तुम और हम
तुमको अलविदा कहने के ठीक पहले
मैं कहना चाहता था की
बहुत कुछ सीखा हैं मैंने तुमसे,
जैसे तुमने कहा था कि
हमारा “हम”,
मेरे “मैं”, और तुम्हारे “तुम”
दोनों से बहुत बड़ा हैं,
और जबकि तुम,
हमारे “हम” में अपना “तुम” समाने को हमेशा तैयार थी,
तब भी मैं,
मेरा “मैं” थामे तटस्थ खड़ा रहा |
हमारे “हम’ के बिखरने के बाद का बचा हुआ मैं,
अगर बचा रहा तो,
सिर्फ उन स्मृतियों में ही बचा रहूँगा,
जिनमे मेरे "तुम" का पर्याय सिर्फ "तुम "ही थी,
मैं तुम्हारे कहे गए शब्दों में ही व्यक्त कर पाउँगा स्वयं को
और तुम्हारे दिए गए सम्बोधनों से ही पुकारा जाऊंगा।
मैं आगे बढ़ने की किसी भी कोशिश में
तुम्हारी ही दिखाई किसी दिशा में पाउँगा खुद को,
खुद को पाने के किसी भी प्रयास में
शायद मैं तुम्हारी ही ओर लौट आऊंगा |