नाम
मेरे बच्चे
जो नाम मैं दे रहा हूँ तुम्हे
उसे माथे पर कील सा ठोक लेना तुम
ओढ़ लेना बदन पर खाल की तरह
अस्तित्व से चिपकने के लिए.
ढलती दोपहरों की परछाई सा पीछे नहीं चलेगा यह नाम
तुम्हारे
पहुँचने से पहले ही सावधान कर देगा लोगो को
सुविधानुसार मुखौटे पहनने के लिए.
इसकी उपयोगिता
अर्थ , परिभाषा या लिंग से साबित नहीं होगी
और न ही महत्ता को कोई बल मिलेगा
सिर्फ इसके पर्यावाची या उपमानों से,
इसका धर्म
मिटटी देगा जीवन को पुष्पित पल्लवित होने के लिए
और जाति से
जल और खाद मिलेगा कर्मो को.
कविता में जिस गहराई और समझ की आवश्यकता होती है . वह मुझे कूट कूट कर भरी मिलती है आपकी कविताओं में. निसंदेह कविता जिस उद्देश्य से लिखी जानी चाहिए, आप सदैव उसमें माहिर रहे हैं.
ReplyDeleteGood one bharat...deep thinking..
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