Sunday, September 1, 2013

कुछ अफगानी लड़किया

मीरमन बहीर, अफगानिस्तान काबुल में स्थित एक महिला साहित्यिक संगठन हैं,जिसमें काबुल की कई महिला रचनाकार हर शनिवार को एकत्रित होकार काव्य पाठ करती हैं।मीरमन बहीर की विशेषता यह हैं की इसमें अफगानिस्तान के दूर  दराज के तालिबानी इलाको की उन महिलाओ की कविताओं को भी शामिल किया जाता हैं, जिनके लिए अपने घर की चारदीवारी को पार करना तालिबानी नियम के अनुसार एक जघन्य अपराध हैं। फर्क सिर्फ इतना इतना हैं इन कवि गोष्ठियो में इन महिलाओ की कविताओं को फोन के द्वारा शामिल किया हैं, आंचलिक इलाको की यह लड़कियां जब भी उन्हे समय मिले चोरी छुपे मीरमन बहीर के ऑफिस में फोन करके अपनी रचना उनको फोन पर पढ़ देती हैं,जिसे मीरमन बहीर की ही कोई सदस्य कलम से दर्ज कर लेती हैं और अगली सभा में इसका पाठ होता हैं।
यह एक नायाब तरीका हैं इनका अपनी भावनाओ को एक समूह तक प्रेषित करने का और शायद इसके अलावा और कोई तरीका हो भी नहीं सकता इनके पास , एक सत्रह साल की लड़की राहिला मुशका (मुशका का पश्तो भाषा में अर्थ हैं मुस्कान)  अपनी पहचान छुपने के लिए “जरमीना” के नाम से लिखती थी, उसे मीरमन बहीर के बारें में रेडियो से पता चला था और उसकी एक सक्रिय सदस्य बन गयी थी, वह बहुतया फोन करके अपने कवितायें दर्ज करवा लिया करती थी , इस तरह वह काबुल महिला काव्य समाज में बहुत लोकप्रिय हो चली थी।
ऐसे ही एक शनिवार की दोपहर जरमीना मीरमन बहीर की फोन हॉटलाईन पर काबुल में बैठी सदस्य ओगाइ अमाइल को चोरी छुपे अपनी रचना सुना रही थी, जिसे उसके घर में उसकी भाभी ने सुन लिया और उसके भाइयों से उसकी शिकायत कर दी ,जरमीना एक प्रेम कविता पढ़ रही थी और उसके परिवार को लगा की फोन के दूसरे सिरे पर जरमीना का प्रेमी हैं जिससे वो प्रेमालाप कर रही हैं,घरवालो ने उसकी कोई भी बात नहीं सुनी और उसको तब तक मारते रहे जब तक की वो बेदम नहीं हो गयी,इसके बाद जरमीना ने आत्मदाह कर लिया, जरमीना खुद नहीं मारी, मार दी गयी उसक दोष सिर्फ इतना था वो कविता पढ़ रही थी, जो तालिबानी समाज के अनुसार एक घोर पाप हैं ।
जरमीना का निकाह उसके चचेरे भाई के साथ पैदा होती ही पक्का कर दिया गया था , और शादी से पहले ही उसका मंगेतर एक लैंडमाइन  धमाके में मारा गया जिसके बाद जरमीना का निकाह उसके एक देवर के साथ तय कर दिया गया , वह सीधा प्रतिरोध नहीं कर सकी और अपने अकेलेपन का सहारा कविताओं में खोजने लगी,

जरमीना की यह कहानी कोई एक कहानी नहीं हैं , अफगानिस्तान के कस्बो देहातों में जरमीना जैसा ही हश्र और भी बहुत से अन्य युवा कविएत्रियों का हुआ हैं जिन्होने अपनी रचनाओ में न सिर्फ अपने पिंजरों के बारे में लिखा हैं , बल्कि तालिबानी क्रूरता, अमरीकी फौज का दोहरापन,अफगान पर रूसी दमन और अफगानी स्वतन्त्रता के विषयों पर लिखा।
महिला शिक्षा पर तालिबानी नजरिएँ का कटाक्ष जरमीना ने कुछ इस तरह किया ,
      तुम मुझे स्कूल जाने की इजाजत नहीं देते ,
      लेकिन याद रखना एक दिन तुम भी बीमार पढ़ोगे ।

मुझे यह उपरोक्त सारी जानकारी न्यूयॉर्क टाइम्स मैगज़ीन में छपे , एलिजा गृस्वोल्ड द्वारा क्र्यासिस रेपोर्टिंग लिखे एक लेख से प्राप्त हुईं हैं ,जिसको पढ़ने के बाद मुझे जरमीना और उसकी जैसे अन्य लड़कियों पर खुद एक कविता लिखने की प्रेरणा मिली, इस कविता का पाठ मैंने डाइलाग (SAARC Foundation के साहित्यिक कार्यक्रम) के तत्वधान में “युवा कविता पाठ” आयोजन में 31 अगस्त 2013 को किया ।
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कुछ अफगानी लड़किया
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कुछ अफगानी लड़किया
छुप- छुप कर
पश्तो में लिखती हैं कविता
कविता में लिखती हैं स्कूल
स्कूल की खिड़कियों से शायद नीला नजर आ जाये काला आसमान,
स्कूल की दीवारें सिमटेंगी नहीं कुछ इंच हर रोज़ उसकी तरफ,
स्कूल के रास्ते में कोई तालिबानी किताबें बांटेगा उसे हर सुबह,
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद,

कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उम्मीद
उप्पर से बरसेगा सिर्फ पानी
बम नहीं,
अगली बारिशों में
मिट्टी से धूल जाएंगी खून की पर्ते
जमीनो में बीछेंगी फसल, बारूद नहीं
कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन

कुछ अफगानी लड़किया ,कविता में लिखती हैं अमन
जेहाद गरीबी से करो ,
धमाको से भूख नहीं मिटती, खुदा के ठेकेदारो
खुदा के ठेकेदारो
मजहब सिर्फ मर्दो का खैरख्व्ह नहीं,
हर चहरे में अल्लाह बसर करता हैं
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत

कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इबादत,
किताबें पाक मे कहा तय हैं तुम्हें हमारी किस्मत का हक
हम ना कर देंगी तुम्हारे निशान को पेट में रखने से नौ महिना
इसी पनाह के बदले में ही देते हो ये कैद ...???
घरो के पिंजरे
टूट जाएंगे एक दिन
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान

कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं उड़ान
उड़ चले की यह दुनिया गैर इंसानी हैं
सरहदें सिर्फ कौमो को बाँट सकती हैं
दमन का कोई मुल्क नहीं होता
इस् पार जलाते हैं , उस पार लूटी जाती हैं.....
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत

कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं इज्जत,
करते हैं फैसला ...दुध्मुहेपन में सगाई
गुड़ियों गुड्डो की शादी
बेवक्त विधवा ... देवर का घर बसाई
बगावत तो जिंदा जलायी
कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं प्रेम

कुछ अफगानी लड़किया, कविता में लिखती हैं प्रेम
कविता में पूछती हैं प्रश्न
कविता में ही देखती हैं सपने
कविता में ही तलाशती हैं अपना वजूद
कविता में पाती हैं कारण अपने होने का
कुछ अफगानी लड़किया , खुद को जीवित रख पाती हैं सिर्फ कविताओं में ही,
कुछ अफगानी लड़किया , कविताओं में लिखती हैं मौत

      ~~~ भरत खुल्बे 31 अगस्त 2013  

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