Sunday, September 20, 2009

तुम्हारा रुदन जग का संगीत





















शिकायतें मत करो,
मत करो व्यतीत घुटन भरा जीवन,
मत करो अश्रुओं का पान,
वेदना का प्रदर्शन भी मत करो,
मत करो हिंसक प्रतिकार,
मत गिराओ आत्मा को निम्नता का तल तक,
क्यूँकि तुम्हारी आक्रमकता,
वेदना भरे स्वरों में परिलक्षित,
मानसिक अन्तर्द्वन्दत,
प्रताड़ना के बावजूद प्रर्दशित अतुलनीय धैर्य,
दोनों ही स्वयं तुम्हारे अस्तित्व के लिए घातक बन जाते हैं,
तुम जग करूणा की आशा करते हो,
और चाहते हो कि कोई तुम्हारे घावो पर मरहम लगाये,
यह माना कि,
झूठा दयाभाव लिए,
कई निगाहें तुम्हे निहारती हैं,
जबकि कटु सत्य यही हैं कि,
तुम्हारा यह दयनीय स्वरुप,
जयघोष करता हैं,
तुम्हारे तथाकथित चाहने वालो कि विजय का,
और तुम्हारा रुदन,
जग का बन संगीत जाता हैं.

1 comment:

  1. शब्दों का सही इस्तेमाल करना तो कोई आपसे सीखे....एहसास को बयाँ करना कभी बहुत आसान हो जाता है तो कभी बहुत मुश्किल...आप बहुत अच्छा लिखते हैं

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