Sunday, September 20, 2009



कैसा होगा वह पल





















कैसा होगा वह पल,
जब मेरी प्रतीक्षा में राह देखते,
बोझिल हो गयी होंगी
पलके तुम्हारी,
जब तुमने  लिखने तो शुरु किये होंगे कई पत्र,
पर शायद पूर्ण एक भी न कर पाई होगी.

पढ़ा होगा तुमने अकेले मेरे,
मेरी हरेक कविता को
सैकरो बार
बार बार
और ढूँढने की कोशिश की होगी,
खुद को
हर पंक्ति हर शब्द में ,
गुनगुनाती रही होगी तुम
गीत मेरे लिखते  हुएँ  नाम मेरा
किताब के आखरी पन्ने पर
दीवार पर
और न जाने कहाँ  कहाँ ,

कैसा होगा वह पल,
जब मेरा होना,
आधार बन गया होगा जीवन का तुम्हारे,
और उद्देश्य बन गया होगा मुझे पाना ,
तब  न सोचा कभी,
जीवन के दोराहे में
अलग अलग रहो पर
मीलों बढ़ चुके होंगे हम,
और हमारा मिलन असंभव
धरा गगन की तरह
रात और दिन की तरह
नदी के दो किनारों की तरह.

1 comment:

  1. अनूठे प्रेम को प्रर्दशित करती कविता...इतना कुछ कह जाती है कि संभालना भी मुश्किल हो जाता है

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